રવિવાર, 31 ઑગસ્ટ, 2014
बस में नहीं था, इलाज बेवफाई का, तबीब के पास
नासूर घावों के खून से, खुद की दवाई करने लगे !!
ना जाने क्यों, तबीब भी, मेरी ही बुराई करने लगे !!!!
बस में नहीं था, इलाज बेवफाई का, तबीब के पास !!
गहराई की, पैमाइश वास्ते, दिल खुदाई करने लगे !!!!
इलाज था इस दर्द का, सिर्फ मेरे मुहिब्ब के पास!!
नासमज तबीब, अपने हुन्नर की, नुमाई करने लगे !!!!
होश में रहते हुए भी, बेहोशी का आलम छाया था !!
तरस खा कर मुझ पे, हरकोई रहनुमाई करने लगे !!!!
देख कर, खस्ता दिल को, आये चश्म-ऐ-तर सभी !!
पी रहे थे तल्ख़ाबे ग़म, तब सब जुदाई करने लगे !!!!
नीशीत जोशी
(पैमाइश - measurement, survey,खस्ता - broken/sick/injured ,चश्म-ऐ-तर - wet eyes ,तल्ख़ाबे गम-प्रेम के दुख का पानी रूपी विष) 25.08.14
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