રવિવાર, 19 જુલાઈ, 2015
ईद मनाये कैसे
दिखा नहीं है चाँद, ईद मनाये कैसे,
छिपा कहीं है चाँद, ईद मनाये कैसे,
नजारा आज छत का हम देख लेते,
सुना वहीं है चाँद, ईद मनाये कैसे,
अता हो जाये इबादत गर खुदा करे,
चुप तो नहीं है चाँद, ईद मनाये कैसे,
तिश्नगी दिल की बुझी नहीं है अभी,
मिला नहीं है चाँद, ईद मनाये कैसे,
काश की मेरे बुलाने पे वो आ जाए,,
बैठा यहीं है चाँद, ईद मनाये कैसे !!
नीशीत जोशी 18.07.15
मेरे मालिक है आप
मेरे मुरशिद, मेरे रहबर, मेरे मालिक है आप,
हर एक कतरे में, मेरे आका, शामिल है आप,
हर पत्ता शज़र का, आपके इशारों पे झुमे,
मेरे हर अच्छे बुरे कर्मो से, वाकिफ है आप,
हर इल्म के दाता,और रहमतो के भंडार हो,
पुरी दुनिया को,सबक देने के, माहिर है आप,
हर करिश्मा-ए- तुर्बत, जागीर है आपकी,
हर एक नमाज़ी के, बेश़क खादिम है आप !!
नीशीत जोशी 16.07.15
શબ્દો
થ્યા જ્યાં રૂબરૂ નિ:શબ્દ બન્યા શબ્દો,
મૌન શણગારવા પાંગળા રહ્યા શબ્દો,
મળતાજ હર્ષ ઉજાગર થયો આંખેથી,
અને વિયોગે નયનેથી વહ્યા શબ્દો,
ઢાંકપીછોડો કરવામાં કાબેલ જે હતા,
વાચાળ થ્યા ઘાવ અને સ્ફૂર્યા શબ્દો,
ધ્રુજતા અધર વર્ણવે જોને દર્દ કેટલું,
વેદના વમળ સંગ તણાઈ ગ્યા શબ્દો,
છે પ્રેમની આગ,તો ધુમાડો પણ ઉઠશે,
દર્દ વેદનાના આ પર્યાય થ્યા શબ્દો.
નીશીત જોશી 15.07.15
जिंदगी यूंही तमाम होती है
मत्ला का शेर, मशहूर गीतकार और शायर श्री प्रेम धवन जी का लिखा हुआ है !
"सुबह होती है शाम होती है,
जिंदगी यूंही तमाम होती है,"
रहते है महफिल में खोये से,
मय बेवजह बदनाम होती है,
हुजुम यादों का गर आ जाए,
फिर दिवानगी आम होती है,
समझते है पागल दुनियावाले,
जब गुमशुुदगी दवाम होती है,
लोग ढूंढते है उन्हे काफिले में,
ये मुहब्बत जब ग़ाम होती है !
नीशीत जोशी 13.07.15
(दवाम=lasting,ग़ाम=stop)
રવિવાર, 12 જુલાઈ, 2015
શ્વાન સ્વભાવે ભસશે હવે

वोह जब से मेरी जाँ हो गयी

અજબ શહેર છે

મંગળવાર, 7 જુલાઈ, 2015
चल तेरी मेरी कहानी को मुुकाम दे

ऐ जिंदगी बता तुझे मैं कैसी लिखूँ

રાધા તૂ આમ શાને રડે છે


જિંદગી તુજને ક્યાં જાણી છે

वह मेरा बेसब्र चश्मबरा होगा

આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ્સ (Atom)