तेरी चाहत ने, क्या क्या बनाया,
आदमी थे काम के, बेकाम बनाया,
किया करते थे कुछ और दिनरात,
राह भटके, तुने रास्ता कुछ दिखाया,
न थी कोइ कमी यहां की दुनीयामे,
एक दिल के लिये कैसा, मोहताज बनाया,
मखमली सेज पे सोते थे हर रात,
उस सेज ने भी रात भर सपनो से सताया,
सांज ढलने पे आती रहती है बस यादे,
न मानाता है ये दिल कितना इसे समजाया ।
नीशीत जोशी
બુધવાર, 12 જાન્યુઆરી, 2011
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