जीन्दगी बसर कर गये मगर जीये नही,
हालत पे कभी अपनी भरोषा किये नही,
गुजर जाता रहा कारवा युहीं बे-मंजील,
राहोको कभी मंजीलका रास्ता दिये नही,
मुश्किलसे मिली थी महेफिल सजानेको,
महेफिलमे कभी बुजे चीराग जलाये नही,
नजरोके जाम पीने दौड पडे शराबी जैसे,
प्याला मीले वैसा तो सुरा कभी छुये नही,
पतजड वसंतकी कहानी बहोत थी कहनेको,
किसीसे मनचाहे मौसमका जीक्र किये नही,
गर पुछ लेगा वो कभी भी राह चलते चलते,
कह देगे तेरी यादोको सीने से दुर किये नही ।
नीशीत जोशी
શુક્રવાર, 25 માર્ચ, 2011
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