मैने रबको एक खत लिखा है,
पर शायद वोह रब सो रहा है,
उतरेगा वो एकदिन अवतरीत,
पर शायद रब व्यस्त हो रहा है,
जगमे पापोका ढेर पर्वत बना,
यसुपाल बेशर्मीसे बकते रहा है,
पन्नो पे लिखी राव या फरियाद,
मेरा रब शायद सब गीन रहा है,
गुजारीश करना काम है अपना,
रब ठीक अपना काम कर रहा है,
आशा नही पुर्ण विश्वाश है की,
फिरसे मेरा रब अवतरीत हो रहा है ।
नीशीत जोशी
શનિવાર, 5 માર્ચ, 2011
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