રવિવાર, 15 એપ્રિલ, 2012
अब दिवानगी भी सरेआम होने लगी है,
जब से मेरी फिक्र में दिनरात वो जगी है........
* * * * *
पिला साकी तेरे मयखाने तक आये है,
तूने ही नयनो के जाम हमे पिलाये है,
न तडपाना तूम बंध कर के दरवाजे तेरे,
कितनी मुद्दतो बाद मंझील तेरी पाये है,
जमाना दे गर दर्द पर तू देना मुजे प्यार,
एक तू ही तो है मेरी और सब पराये है,
जन्नत भी अब तो ना मांगेंगे दुआओ में,
जहां के आशीको ने वहां भी पथ्थर खाये है,
बेवजह शक के दायरेमें रह फिक्र करते हो,
'नीर' ने हर कुचे को तेरे इश्क से सजाये है ।
नीशीत जोशी 'नीर' 12.04.12
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