રવિવાર, 22 એપ્રિલ, 2012
नही पाते है
चाहकर भी हम तुजे हकीकत कह नही पाते है,
करते हो जो सीतम मुज पे वो सह नही पाते है,
तेरे रंज से अब तो जीना भी हो रहा है दुस्वार,
ठहर गये आंखो के अश्क मेरे बह नही पाते है,
कुछ वाकिये को भुल जाना ही होता है बहेतर,
बुनीयाद मजबुत हो तो मकान ढह नही पाते है,
तीनका तीनका जोड हमने बनाया आशीयाना,
उस घर में बेगैर तेरे अब हम रह नही पाते है,
तुफान में भी रास्ता बना लिया उन लहेरो ने,
तेरे प्यार को तरसते है मगर वह नही पाते है ।
नीशीत जोशी 20.04.12
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