રવિવાર, 15 એપ્રિલ, 2012

जमाने में चर्चा होती है


चांद आज बदनाम हुआ चांदनीके नाम से,
समंन्दर शरमाया आज लहेरो के काम से,

लडखडाते कदम फिर रुक गये मयखाने पे,
वो नजरे बे-पर्दा हुयी शराबीओ के जाम से,

कारवां चलता रहा तुफानो को काटते काटते,
सुबह की धुप खामोश हुयी आने से शाम से,

उची इमारातो मे रहनेवालो जरा सोच लेना,
रहते हो ये झोपडीयों के फना होने के दाम से,

मोहब्बत भी रह गयी है सिर्फ नाम के खातीर,
जमाने में चर्चा होती है 'नीर' कि हर आम से ।

नीशीत जोशी 'नीर' 11.04.12

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