आयी फिर वो नवरात्रा की रात,
खेलते न थकते थे
चोक में बीताते थे
वो नवरात्रा की रात
मीले थे वहीं,
न भुला कभी,
नजरे मीलाना,
फिर शरमाना,
एक दुजे के ख्वाबो में
बीलकुल खो जाना,
आह! क्या थी वो नवरात्रा की रात,
कहां हो आज तुम,
और कहां है हम,
क्या तुम्हे याद नही,
आज भी वो नवरात्रा की रात,
एक बार फिर आ जाओ,
अब खेलेंगे नही,
गुफ्तगु में बीता देंगे,
वो नवरात्रा की रात ।
नीशीत जोशी 26.03.12
રવિવાર, 15 એપ્રિલ, 2012
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