શનિવાર, 13 ઑક્ટોબર, 2012

क्या तरकीब आजमाई थी

घायल करने की उसने क्या तरकीब आजमाई थी, खंजर से नहीं उसने नजरो से ही क़यामत ढायी थी, निकल रहे थे जो उनकी महेफिल से किनारा करके, पर जब मुड के देखा तो पीछे उसकी ही परछाई थी, निकले कही और जाने को,मयखाना दरमियाँ आया, खूब याद रहा,ना पिने की कसम उसीने खिलायी थी, कसम आज तोड़ दी देख कर कजरारे दो नयनो को, नजरो के जाम पिने की बात आशिको ने बतायी थी, लगा जैसे जन्नत जमीं पर सिर्फ उनकी आँखों में है, उसने पहली नजर से ही मुहोब्बत की राह दिखायी थी ! नीशीत जोशी 09.10.12

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