શનિવાર, 27 ઑક્ટોબર, 2012
कलम
उन कोरे कागज़ पे चल पड़े कलम,
स्याही न हो तो खून से चले कलम,
ख़त लिखना कोई आसां नहीं होता,
प्यार के जज्बात वास्ते जले कलम,
चिठ्ठी में लिखना तो है बहोत मगर,
उनके एक नाम से आगे न बढे कलम,
लिख जो पाऊं नाम-ए-महेबूब के आगे,
जहां के किस बाज़ार से ऐसी ले कलम,
वो ख़त भी बन जाये बेमिसाल किताब,
अगर महेबूब के अहेसास को पढ़े कलम !
नीशीत जोशी 26.10.12
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