શનિવાર, 24 નવેમ્બર, 2012

हमें आता नहीं

तुम्हे कैसे भुलाया जाए ये हमें आता नहीं, यादो को कैसे सुलाये, कोई समजाता नहीं, जागती रहती है ये आँखे,ना कह नहीं पाते, क्या करे रातो को तेरा वो ख्वाब जाता नहीं, सुनहरे पल जो कभी साथ बिताये थे हमने, क्या करे आँखों से वो पर्दा कोई हटाता नहीं, अपना कहने को बचा था एक दिल,गवा बैठे, क्या करे वापसी का दिन कोई बताता नहीं, हमने खेली थी हर बाज़ी हारने की ज़िद में, क्या करे जीत का वो जश्न कोई जताता नहीं ! नीशीत जोशी 23.11.12

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