શુક્રવાર, 21 જૂન, 2013
सिख लिया
आँसुओ की खातिर मुश्कुराना सिख लिया,
मुश्कराते देख उसने शरमाना सिख लिया,
बाते करने की इल्तजा को मान गए तुरंत,
गुफ्तगू करते उसने बहकाना सिख लिया,
हर रात उनके सपनों को लगे थे सजाने,
ख्वाब में आके उसने तडपाना सिख लिया,
सोचा,कभी तो बदलेगा मौसम आँखों का,
पर अदा से आँखों का बरसाना सिख लिया,
पीने की वो आदत तो पाल रखी थी हमने,
बिन पीये ही उसने लडखडाना सिख लिया |
नीशीत जोशी 15.06.13
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