રવિવાર, 30 જૂન, 2013
*** बारिश ***
अब बारिश से भी डर लगता है,
बुँदे देखकर भी कहर लगता है,
मुहब्बत की ये मिसाल थी कभी,
बारिश का पानी जहर लगता है,
मरघट बना दिया बाबा धाम को,
मलवो से भरा वो शहर लगता है,
चहल पहल हुआ करती थी जहाँ,
वही धाम भूतो का घर लगता है,
इतने पानी में भी लोग प्यासे रहे,
ये कलयुग का ही कहर लगता है |
नीशीत जोशी
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