રવિવાર, 23 જૂન, 2013
प्यास मछली को भी तो लगी होगी,
पिने को आब,दरिया में तरसी होगी,
निकली होगी पिया की राह में कहीं,
ढूंढते हुए मझधार तक सरकी होगी,
दिल लगाया तो कभी टूटा भी होगा,
बिच पानी आँखोंमें आयी नमी होगी,
सजाये होंगे उसने कई खाब आंखोमे ,
उसकी राते भी ख्वाबो से भरी होगी,
निकाल दिया होगा जब दिल के बाहर,
दरिया में रहने मशक़्क़त करी होगी,
मझधारमें कितनी सुकून से रही होगी,
मछली जरूर किनारे आके मरी होगी |
नीशीत जोशी
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