રવિવાર, 9 જૂન, 2013

नग्मे गा गा के रोये

397399_10200585739919378_1863871688_n एक मत्ला मैंने कही पढ़ा...और उसी मत्ले को लेकर... कुछ लिखने की कोशिश की... वोह मेरी दास्ता-ए- हसरत सुना सुना के रोये, वोह मेरे आज़माने वाले मुझे आज़मा के रोये, टूटे हुए एक खिलौनों की तरहा लेकर हाथो में, वोह मेरे दिल को, आँखों से समंदर बहा के रोये, मुहोब्बतकी फकीरी मेरी रास न आयी बादलोको, बनके बारिस, ज़मी पे बुँदे टपका टपका के रोये, बेदर्दी उन यादो ने किया ऐसा सितम पे सितम, विरान रातो में वो सुर्क सपने सजा सजा के रोये, अकेले थे तब जिन्दगी कट रही थी आसानी से, अब मौत भी अपनी तन्हाई के नग्मे गा गा के रोये | नीशीत जोशी 05.06.13

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