રવિવાર, 9 જૂન, 2013
भरी महेफिल में हम तन्हा रह गये
भरी महेफिल में हम तन्हा रह गये,
खड़े थे वो किनारे और हम बह गये,
इल्तझा हमारी,चल दिए ठुकरा कर,
इन्तजार के हर लम्हे हम सह गये,
दास्ताँ मुहोब्बत की सुनके लगे रोने,
दर्द में अपने हर जख्म हम कह गये,
कमजोर रही होगी प्यार की इमारत,
एक एक करके सब वो पत्थर ढह गये,
आना न था तो वादा क्यों किया उसने,
कब्र तक इन्तजार करते हम रह गये |
नीशीत जोशी 08.06.13
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)
ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો