
छोड़ दिया है चाँद ने छत पे आना,
बंध कर रखा है तूने जब से जाना,
आफताब भी छुपा है अन्जुमन में,
इन्तजार है किसी हमसफ़र पाना,
सजदा करे सितारे रात आसमाँ में ,
नहीं डालते मुंह में कोई एक दाना.
छोड़ दिया फूलोने महकना बाग़ में,
वो बागबान भी मारते है उसे ताना,
शायद तूम भूल जाओ ये हक है तुझे,
पर दिल ने कब कहाँ किसीका माना ?
नीशीत जोशी 17.06.13
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