શનિવાર, 15 જૂન, 2013
पूरा समंदर पी गए
पूरा समंदर पी गए फिर भी प्यासे रह गये,
जिन्दगी जीने के बस सिर्फ बहाने रह गये,
अरमां तो था जीने का बहोत पर क्या करे,
शहर-ए-खामोशा अब मेरे ठिकाने रह गये,
आंसू की तरह निकला समंदर भी नमकीन,
मीठा होने की आश में हम किनारे रह गये,
हमसफ़र बन के साथ देना एक फ़साना रहा,
चले गये छोड़ के सब हमें,अफ़साने रह गये,
आयेगा कभी तो उजाला इन अंधेरो के बाद,
दिल को तस्सली देने सिर्फ दिलासे रह गये |
नीशीत जोशी
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