રવિવાર, 12 એપ્રિલ, 2015

एक लाश

डूबो के कस्ती मज़धार वह चलते रहे, ले के सहारा यादो का हम बचते रहे, डूब रहे थे हम,इस्तिग़ासा हुयी बेकार, साहिल पे बैठे लोग तमासा कहते रहे, कुछ कम नहीं थे हम भी किसीसे यूँ तो, हसते हुए खुद डूबके भंवर में फसते रहे, बंध हुयी साँसे और आ गए ऊपर पानी के, देखकर लोग हमे तैराकी समझते रहे, हम जो एक लाश,बनकर किनारे पहुंचे, किनारे पे क़ातिल इज़हारे इश्क़ करते रहे !!!! नीशीत जोशी (इस्तिग़ासा=call for help) 08.04.15

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