રવિવાર, 26 એપ્રિલ, 2015

तुम भी पा सकती हो, बुलंदी अपनी,

कमजोर नहीं तू, सहना तेरी कमजोरी है, तुझ पे ढाएंगे सितम, जबतक तू भोली है, उठ खड़ी हो, दिखा दे अपनी ताक़त सबको, कह दे, कर सकती हूँ कुछ भी, मेरे में मर्दानी है, मर्दो ने ही, बंदी रखा था, औरत को क़फ़स में, अब उस बातो में, न कुछ भी आनीजानी है, पाल रखा था, झूठा गुरूर मर्दो ने जहन में, कहते थे, औरतो की जगह, सिर्फ चार दिवारी है, हौसले से, तुम भी पा सकती हो, बुलंदी अपनी, हर इल्म है तुझ में, ताक़त यही आजमानी है !!!! नीशीत जोशी 18.04.15

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