રવિવાર, 12 એપ્રિલ, 2015
इन्सान तो भूल जाता है
मंच पर, किरदार रोज़ नये, आते जाते रहते हैं,
अपनी बनायी दुनिया को, खुदा सजाते रहते हैं !!
इन्सान तो भूल जाता है खुद की इन्सानियत,
खुदा के नाम की खोलके दूकान कमाते रहते है !!
अच्छा कुछ होने पे थपथपाते है पीठ खुद की,
जरा बुरा होने से इल्जाम खुदा का लगाते रहते है !!
खुदाने बनाया इन्सान को बहुत सोचने के बाद,
पर वही इन्सान अब खुद को ही खुदा बताते रहते है !!
भूल गया है आज प्यार मुहब्बत का हर सबब,
नफरतो की बुनियाद पर ही मकान बनाते रहते है !!
नीशीत जोशी 03.04.15
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