રવિવાર, 12 એપ્રિલ, 2015
उसने कभी चाहा नहीं
मुझे है उनसे चाहत, उसने कभी चाहा नहीं,
कैसे करूँ मैं मुहब्बत, उसने कभी चाहा नहीं,
देखते ही मैं बह गया जज्बातो में,
खो गया मैं उनकी सभी बाते में,
करता रहा मैं ईबादत, उसने कभी चाहा नहीं,
कैसे करूँ मैं मुहब्बत, उसने कभी चाहा नहीं,
देखता रहता था हरदम नीगाहो में,
ले लेता था तस्वीर हरदम बाहों में,
कैसे माँगू मैं इजाजत, उसने कभी चाहा नहीं,
कैसे करूँ मैं मुहब्बत, उसने कभी चाहा नहीं
क्या होगी मजबूरी कोई नही जानता,
दिमाग मान भी ले ये दिल नही मानता,
कैसे करूँ मैं शिकायत,उसने कभी चाहा नहीं,
कैसे करूँ मैं मुहब्बत, उसने कभी चाहा नहीं !
नीशीत जोशी 05.04.15
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