રવિવાર, 13 નવેમ્બર, 2011
तुम
किसी कूचे में पडे होते जो न मीलते तुम,
बगीचाभी मुरजा जाता जो न खीलते तुम,
होश भी न रहेता, पयमाना हाथोमें रहेता,
महोब्बतका ईजाहारे पैगाम न लीखते तुम,
नींदको भी कर देता खामोश,रात जाग कर,
सिमटी यादोके सपनो में गर न दीखते तुम,
आंखे बन जाती एक बेखौफ तुफानी दरीया,
प्यारकी पतवार चलाना गर न सीखते तुम,
परिन्देभी पंख खोल कर आसमां नापते नहीं,
गर हाथोमें हाथ पकडके साथ न फिरते तुम,
फरिस्तो को भी रास्ता मील गया होता गर,
नबी के चाहनेवालो का वाकीया न गीनते तुम ।
नीशीत जोशी 06.11.11
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