
कौन कहता है हजारो चांद की ख्वाईश करो,
वो बनके आये चांद वही एक फरमाईश करो,
सीतारे तो बहोत है चांद मगर एक आसमांमे,
चांदनीसे कहो अब चांदकी न अजमाईश करो,
राहबर बनके मुश्कील राहमें भी साथ देते रहे,
फुलोको देख दर्द को अठारा से न बाईश करो,
माझी बनके कस्तीको ले आये किनारे पर अब,
मजधारमें डुब जानेकी न अब दिलेख्वाईश करो,
अपना कहा है,अपना भी लिया है,अपना बना के,
अब बार बार कहके महोब्बतकी न नुमाईश करो ।
नीशीत जोशी 24.11.11
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