શનિવાર, 26 નવેમ્બર, 2011

कौन कहता है


कौन कहता है हजारो चांद की ख्वाईश करो,
वो बनके आये चांद वही एक फरमाईश करो,

सीतारे तो बहोत है चांद मगर एक आसमांमे,
चांदनीसे कहो अब चांदकी न अजमाईश करो,

राहबर बनके मुश्कील राहमें भी साथ देते रहे,
फुलोको देख दर्द को अठारा से न बाईश करो,

माझी बनके कस्तीको ले आये किनारे पर अब,
मजधारमें डुब जानेकी न अब दिलेख्वाईश करो,

अपना कहा है,अपना भी लिया है,अपना बना के,
अब बार बार कहके महोब्बतकी न नुमाईश करो ।

नीशीत जोशी 24.11.11

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો