શનિવાર, 5 નવેમ્બર, 2011

अगर होता


हर लब्ज अगर मंन्जर बना होता,
मिला गम फिर अंन्दर फना होता,
आस्तिनमें पालते बीच्छु कभी तो,
सांपके असरे-जहर कम सुना होता,
मुफलीसी भी छुट जाती आहिस्ता,
गर फकिरो का सीना भी तना होता,
कारवां दिखता तो साथ हो लेते पर,
उम्मीदमें भी साथ चलना मना होता,
रंजीश होती प्यारके फरिस्तोको, गर,
चांदनीने फिर नये चांदको जना होता ।
नीशीत जोशी 01.11.11

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો