
आब-ए-चश्म, आँखों में भर आये,
बनके याद, वो खाब में उतर आये,
उम्मीद थी, राहबर बन देंगे साथ,
नसीबा अपना, बनकर जहर आये,
अपनों में नहीं दिखे, जो थे अपने,
रकीबो की भीड़ में, वो नजर आये,
विराना से उफता गए थे, हम भी,
इसी वास्ते, गाँव छोड़ शहर आये,
सुकून से जीना भी सिखा देंगे उसे,
पर एकबार तो साथ एक डगर आये ??
नीशीत जोशी 30.06.13
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