રવિવાર, 1 જૂન, 2014

यह कलम क्या क्या लिख लेती है

383582_187471438065801_1399974321_n यह कलम क्या क्या लिख लेती है, कभी तेरा कभी मेरा लिख लेती है, कभी जख्म, तो कभी मल्हम, कभी ईकरार, तो कभी ईन्कार, नफरत को प्यारा 'हाँ' लिख लेती है, यह कलम क्या क्या लिख लेती है, कभी रुठना, तो कभी मनाना, कभी सोना, तो कभी जागना, वो रात को भी सबा लिख लेती है, यह कलम क्या क्या लिख लेती है, कभी पथ्थर, तो कभी फूल, कभी बसंत, तो कभी पतजड़, रुख हर मौसम का लिख लेती है, यह कलम क्या क्या लिख लेती है, कभी विरह, तो कभी मिलन, कभी दोस्त, तो कभी दुश्मन, हर रस्म का माजरा लिख लेती है, यह कलम क्या क्या लिख लेती है, कभी शायरी, तो कभी नज्म, कभी काव्य, तो कभी गजल, वो हिन्दी कभी उर्दू भाषा लिख लेती है, यह कलम क्या क्या लिख लेती है । नीशीत जोशी 27.05.14

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