રવિવાર, 29 જૂન, 2014

किसीके हाथ नश्तर तो किसीके हाथो में.....

655400-terroristFILE-1388984955-953-640x480 किसीके हाथ नश्तर तो किसीके हाथो में पत्थर है, तेरे इस पुरे शहर का माहोल पहले से भी बद्दतर है, कहीं पे आग,कहीं धमाका,तो कहीं पे है बलात्कार, सितमगर के सितम ढाने का मानो ये कोई दफ्तर है, मजहब के नाम पर लड़ाते है मासूमो को सब यहां, भाई भाई में कत्लेआम करनेवालो के ये अख्तर है, न जाने कब,कहाँ,कौन सा हादसा जन्म ले ले यहाँ, तेरे शहर में हर हादसा के बाद का हादसा कमतर है, होते जुर्म की तरक़्क़ी किस अल्फाजो में तफ़्सीर करूँ, सादे लिबासों में छिपे गद्दार दहशतगर्ग़ से भी बद्दतर है !!!! नीशीत जोशी 22.06.14

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