શુક્રવાર, 13 માર્ચ, 2015

और कोई कहाँ दिखते है

हरबार दरिया में मोती कहाँ मिलते हैं, फूल जो मुरझाए फिर कहाँ खिलते हैं, वस्ल में खुश, रोते है हिज्र में बहोत, खुश्क आँखों से फिर आंसू कहाँ गिरते है, छुपा रखे चहेरा लाख परदे में लेकिन, आईने में असली चहरे कहाँ छिपते हैं, टूट भी जाये गर इश्क़ में कभी दिल, टूटे टुकड़ो को दीवाने कहाँ गिनते हैं, करते है इंतझार दीदार का हर वक़्त, परछाई में भी और कोई कहाँ दिखते है !!!! नीशीत जोशी 09.03.15

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