શનિવાર, 28 માર્ચ, 2015

जज्बा मुहब्बत का, रहता है वो परवाने में

भूल गया वह, की आ गया अनजाने में, छोड़ के बुतखाना, आ गया मयखाने में, तोड़ के, सब ज़ंजीरें जमाने की मुसल्लम,entire लगा है, दिल टूटने का सबब समझाने में, किया है इश्क़, तो सहनी होगी तन्हाई भी, उनकी यादो के साथ डुबो नहीं पैमाने में, फ़ना होना इश्क़ में, किसी चराग से पूछो, जज्बा मुहब्बत का, रहता है वो परवाने में, पी कर शराब , याद करोगे मुहिब्ब को बहुत, हंगामे से, न हुआ न होगा नाम अफ़साने में !!!! नीशीत जोशी 26.03.15

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