રવિવાર, 1 માર્ચ, 2015

हो चाहे दिल बच्चा

मिलते है जो भी लोग मुझे अंकल बुलातेे है, छोटे छोटे बच्चे भी अब मुझे हसके डराते है, यूँ तो अभी नहीं थे रिटार्यडमेन्ट की उम्र में, मगर पडोशी मुझ को मेरी ही उम्र गिनाते है, मेरे जिस चेहरे को देखकर करतेे थे नाज जो, वही लोग मुझे सामने रख के आईना दिखाते है, डाल देते थे जिस पे भी नजर,हो जाते थे फिदा, वही सब देखने पर मुझे बाकायदा धुर्राते है, ना जाने कैसी विडम्बना से पडता है गुजरना, हो चाहे दिल बच्चा पर अंकल ही कहलाते है। नीशीत जोशी

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો