રવિવાર, 1 માર્ચ, 2015
जब भी वह आईना देखती होगी
जब भी वह आईना देखती होगी जमाल मेरा याद आता होगा,
झुका के पलके उसकी शरमाते हुए चहेरा मुस्कुराता होगा,
तिजारत करनेवाले को भटका देगी उनके करम से,
भुलकर हर हिसाब उनकी ही कोई गझल गुनगुनाता होगा,
हो जाती होगी वह बेखबर आसमान में चाँदनी देखकर,
चाँद भी बादलों के पीछे तस्वीर उसीकी छुपाता होगा,
महफिल में किसी परवाने को फना होता जब देखती होगी,
वह चिराग जरुर उनका जिगर भी बेपाहाँ जलाता होगा,
तडपते हुए रात बिस्तर में वह जब करवटें बदलती होगी,
मेरी यादों का सबब सारी रात उसे जगाता होगा !!!!
नीशीत जोशी
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