શનિવાર, 28 માર્ચ, 2015

क्या नारी होना ही जुर्म है मेरा ?

कोई नहीं है यहाँ, जिसे अपना कह पाये, दोस्तों को बुलाया, मगर पास रक़ीब आये !!!! कब तलक होगी, मुझ पे ऐसी हैवानियत ? कोई तो होगा, जो हैवानो पे सितम ढाये !!!! मेरी बे-इज्जती पे भी, करते है सियासत, कोई तो होगा, जिसे कुछ तो शरम आये !!!! माँ की कोख से ही, सहमी सहमी जिन्दा हूँ, कोई तो अब आये, जो मुझे हिम्मत दिलाये !!!! क्या नारी होना ही जुर्म है मेरा ? बता ऐ खुदा ! गर नहीं, तो फिर क्यों ऐसे हमे दिन दिखलाये ? नीशीत जोशी

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