ગુરુવાર, 4 જૂન, 2015

कितने झख्म दिए और सहे कितने

न हो नशा शराब से तो शराब क्या करे, ठंडी हो अगर फितरत तो ताब क्या करे, रहता हो जो गुस्से को नाक पे लिए सदा, न हो नाझुकी चेहरे पे तो हिजाब क्या करे, तन्हाई की आग से बचना बहुत मुश्किल, हवा जो चले उल्टी तो वो आब क्या करे, लड़खड़ाते हो पाँव मखदूम के जाम लिए, हाथो से गिरे जो प्याला तो काब क्या करे, कितने झख्म दिए और सहे कितने हमने, बेहिसाब हो गर घाव तो हिसाब क्या करे !!!! नीशीत जोशी (ताब= heat, power, नाझुकी= softness, हिजाब= shame, आब= water, काब= tray) 31.05.15

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