घाव को, बेइलाज भर सकता हूँ मैं,
ग़र्क़ होकर भी, उभर सकता हूं मैं,
फिक्र नहीं, वो आइना तूट जाने की,
उन टुकड़ो में भी, संवर सकता हूँ मैं,
डर लगता नहीं, अंधेरो से अब मुझे,
जुगनूओ की, रोशनी कर सकता हूँ मैं,
आने का वादा तो करे, मेरा मुहिब्ब,
ताउम्र, उनके लिए ठहर सकता हूँ मैं,
जरूरत नहीं, समंदर में मझधार जाएँ,
कहे तो, साहिल पे भी मर सकता हूँ मैं !!!!
नीशीत जोशी 18.06.15
બુધવાર, 24 જૂન, 2015
टुकड़ो में भी, संवर सकता हूँ मैं
घाव को, बेइलाज भर सकता हूँ मैं,
ग़र्क़ होकर भी, उभर सकता हूं मैं,
फिक्र नहीं, वो आइना तूट जाने की,
उन टुकड़ो में भी, संवर सकता हूँ मैं,
डर लगता नहीं, अंधेरो से अब मुझे,
जुगनूओ की, रोशनी कर सकता हूँ मैं,
आने का वादा तो करे, मेरा मुहिब्ब,
ताउम्र, उनके लिए ठहर सकता हूँ मैं,
जरूरत नहीं, समंदर में मझधार जाएँ,
कहे तो, साहिल पे भी मर सकता हूँ मैं !!!!
नीशीत जोशी 18.06.15
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)



ટિપ્પણીઓ નથી:
ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો