સોમવાર, 9 માર્ચ, 2009


इतनी भी बेरुखी क्यों है की सपने मे भी आना छोड दीया
दिल तो तोड दीया और हमे दर दर भटकने के लीये छोड दीया

' नीशीत जोशी '

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