રવિવાર, 1 માર્ચ, 2009


जुठ को फिर गले लगाया गया,
एक हसी ख्वाब फिर दिखाया गया,
छीन कर मूजसे मेरे लब की हसी,
उनकी महफीलको फिर सजाया गया,
ख्वाब जाने बीखर गये कैसे,
आशीयां जब मेरा जलाया गया,
एक वो है की रोज हसते है,
हमको अक्सर यंहा रुलाया गया,
रात उनकी है दिन भी उनका है,
चैन फिर क्यो मेरा चुराया गया ।
♫♥ ॐńíکhít jőکhíॐ ♫♥

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