રવિવાર, 10 જૂન, 2012
तुम्हारी मरजी
अब तूम आओ या न आओ तुम्हारी मरजी !
पुकार के बावजूद चले जाओ तुम्हारी मरजी !!
हर शाक पे नया आसीयाना बनाया है तूमने !
थक के खुद का पहेचान पाओ तुम्हारी मरजी !!
प्यार का दरीया तूजे भेजा था डुबने के वास्ते !
तूम कतरा कतरासे ही नहाओ तुम्हारी मरजी !!
घनेघोर अंधेरे में तीर चला के नदारत हो गये !
और उससे खुद ही चोट खाओ तुम्हारी मरजी !!
यूं तो हर शक्स के पास होता है एक ही दिल !
तूम रोज रोज नया दिल लाओ तुम्हारी मरजी !!
नीशीत जोशी 05.06.12
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