રવિવાર, 24 જૂન, 2012
कैसा मौजी शक्स है वोह
वो कहता है आता हूं पर आता भी नही,
न आने का कोइ बहाना बताता भी नही,
इन्तजार में ऐक ऐक पल लगे हे बरसो,
और ख्वाब से खुद रिस्ता हटाता भी नही,
कभी कभी तो वो आलम भी डरा देता है,
रुठ गये है हम और वोह मनाता भी नही,
"हमे तो मोहब्बत हो गयी है तुम्ही से"
यह बात कह करके कभी फसाता भी नही,
न जाने कैसा मौजी शक्स है वोह 'नीशीत'
वोह प्यार भी करता है और जताता भी नही ।
नीशीत जोशी 23.06.12
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