શુક્રવાર, 26 જુલાઈ, 2013
देनी है तो दे देना सजा-ए-मौत
जिन्दगी हर पल हमें आजमाती है,
उनकी यादे बार बार हमें सताती है,
आँखे भी लेती रहे इम्तिहान इतना,
ख़ुशीओ में भी आँखे आंसू बहाती है,
सिखा है सितमगर से सितम सहना,
पर जरा सी बात देर तक रुलाती है,
खोके मिले तो कोई मिलके खो जाए,
दिल की गहेराई जज्बात जताती है,
देनी है तो दे देना सजा-ए-मौत अब,
कतारों में जीने की क्यों सुनाती है?
नीशीत जोशी 26.07.13
तेरी सूरत
“ एक प्रसिध्ध कव्वाली से प्रेरित रचना “
तेरी सूरत निगाहों से हटती नहीं,
दिल मचल जाए तो मैं क्या करू?
तेरी वो यादे जहन में बसती रहे,
दिल धड़क जाए तो मैं क्या करू?
आयना ले कर फिरू,
खुद चहेरा देखा करू,
यादो से रंगत उड़ती रहे,
दिल उछल जाए तो मैं क्या करू?
तेरी धड़कन में जिन्दा रहू,
हर बात में जिक्र तेरा करू,
अल्फाज की तादात बढ़ती रहे,
लब्ज बदल जाए तो मैं क्या करू?
हर उल्फत का सामना करू,
हर उन जखम पे सजदा करू,
वो रूह जिस्म को छलती रहे,
दिल दहल जाए तो मैं क्या करू?
नीशीत जोशी 25.07.13
નથી આ કોઇ ગઝલ કે નઝ્મ
નથી આ કોઇ ગઝલ કે નઝ્મ,આ તો તારા નામની કમાલ છે,
આપનારા ભલે આપે ઇલ્ઝામ,એ તો ખોટી તેઓની ધમાલ છે,
હૃદય થી લખવાને જો બેસું તો શબ્દો પણ પડશે બહુ ઓછા,
કલમ દોડવા લાગશે જોઈ મુજ હાથે તુજનો રેશમી રૂમાલ છે,
લૈલા-મજનુ હોય કે હિર-રાંઝાના કિસ્સા,આ વિશાળ જગ માહી,
વાતો તો આપણી પણ ચર્ચાય છે ગામ પાદરે,એમા શું માલ છે,
સમય આવ્યે બંધાઈ જશે પાળીયા ખેતરે, આપણા પણ એવા,
વાતો કરશે લોકો, જમાનામા આમનો પ્રેમ પણ બહુ કમાલ છે.
વિચારોનો બોજ લઇ આ મન પણ ભાગતું રહે છે અહી તહી હવે,
તુજ યાદોમાં,વાતોમાં,રહેતું મુજ હૃદય પણ તો એક હમાલ છે.
નીશીત જોશી 23.07.13
ऐ खुदा
आ गये तेरी महफ़िल में, एक दर्शनार्थी बन कर,
और गये तेरी महफ़िल से, जीवनसाथी बन कर,
मालूम न था, मुहब्बत ऐसा भी रंग दिखायेगी,
रह गये है खुद के ही घर में, शरणार्थी बन कर,
ऐ खुदा गर तू है, तो बता दे ये दुनिया वालो को,
वरना हो जायेंगे रुख़सत, एक प्रश्नार्थी बन कर,
फिर न करेगा प्यार, न होगी प्यार की दास्तां,
सब सीखते ही रह जायेंगे, एक विद्यार्थी बन कर,
समझकर भुला देंगे तुझे एक पत्थर की मूरत,
ऐ खुदा,कैसे सल्तनत चलायेगा सारथी बन कर?
नीशीत जोशी
दिलबर सा चहेरा दिलमें बसते जा रहा है
होले होले रूख से नकाब हटते जा रहा है,
दिलबर सा चहेरा दिलमें बसते जा रहा है,
इंतज़ार भी क्यों करे अब किसी और का,
वो अहबाब खुद अब आहें भरते जा रहा है,
हकीकत है हो गया प्यार पहेली नजर में,
इसी वास्ते मुझ्तर प्यार करते जा रहा है,
नहीं होती है आसान राह-ए-मुहब्बत की,
आये हर तूफ़ान मुहिब्ब सहते जा रहा है,
सच्चे आशिक डूबते नहीं गहरे समंदर में,
केस अपनी लैला के लिये बहते जा रहा है !!!!
नीशीत जोशी 21.07.13
શનિવાર, 20 જુલાઈ, 2013
સંબંધો કેરા નામની, રમતો ચાલે છે
હવે દુનિયામાં તો સંબંધો કેરા નામની, રમતો ચાલે છે,
કોઈ પોતાનાથી આગળ નીકળી ન જાય, એ જ ધારે છે,
લાગણીઓના તો શુ મોલ હવે, માનવતા પણ ન રહી,
પ્રેમમા પડેલાને લોકો પાગલ ખપાવી, પથ્થર મારે છે,
સપનાની કરે વાતો, પણ હોતી નથી ઉંઘ આંખોમાં રાત્રે,
નિસાસાનો લઇ સંગાથ, કરી ઉજાગરા પૂરી રાત જાગે છે,
પારકા ને કરવા પોતાના, કંઈ એટલા સહેલા નથી હોતા,
જીંદગી આખી રગડોળાયા બાદ, તેનો જ હિસાબ માગે છે,
શિખરે પહોચી, ભૂલી જાય છે આપેલો જેમણે હરદમ સાથ,
પછ્ળાયા બાદ, ફરી સાથ ખોળવા સ્વાર્થી કમાન સાધે છે.
નીશીત જોશી 20.07.13
हम मिलकर
तेरा ही इंतज़ार करते है हम मिलकर,
तेरे ही प्यारको चाहते है हम मिलकर,
तेरी ही आरजू है और है जुस्तजू तेरी,
मुहब्बत इसीको कहते है हम मिलकर,
दिये वादों पे भरोषा रखा है हम सबने,
तुझे ही अपना मानते है हम मिलकर,
पनघट पर तो आओगे मटकी फोड़ने,
पँख पसारे आहे भरते है हम मिलकर,
मुकुट वास्ते, लेकर पँख, बदला नसीब,
नमन कर शीश धरते है हम मिलकर !
नीशीत जोशी 19.07.13
मय गिरने की देर है
बस अब दिल के चीखने की देर है,
कलम से अब तो लिखने की देर है,
अल्फाज तो बनने लगे है जहन में,
अब शब्द बनके निकलने की देर है,
खरीदार आ गये इश्क के बाझार में,
यहाँ बस अब दिल बिकने की देर है,
मुहब्बतका सिला आने लगा है याद,
बस अब मसलक सिखने की देर है,
खाली साघर ले खड़े है मयखाने में,
साकी के हाथो मय गिरने की देर है !
नीशीत जोशी 18.07.13
यह कसूर किसका?
तुम मेरे दर्द से यूँ न मिलाया करो,
अपने मुहिब्ब को न सताया करो,
जख्म दिये है दवा भी तू ही देगा,
दवा का अहेसान न जताया करो,
अपने हबीब का हश्र देखलो जरा,
जुदाई का मंजर न दिखाया करो,
करना कुछ उम्मीद की भी बाते,
अपना कहा है अब न पराया करो,
तुम पे मर मिटे यह कसूर किसका?
आयना से ये फैसला करवाया करो!
नीशीत जोशी 17.07.13
मेरी हर सांस, तेरे नाम की चलती है
मेरी हर सांस, तेरे नाम की चलती है,
मेरी जिन्दगी, तेरी यादो में कटती है,
कोई हो ऐसी जगह, जहाँ पनाह ले ले,
पर हर राह, तेरे घर की राह बनती है,
ख्वाइशो को रोके तो कैसे, नहीं जानते,
दिल में हरबार, नयी ख्वाइश सजती है,
अंधेरो से अब मुझे,वैसा डर नहीं लगता,
घरके अन्दर,जुगनुओ की लौ जलती है,
नींद गर न आयी, सपने भी नहीं आयेंगे,
रात भी सपने वास्ते, मस्सकत करती है !
नीशीत जोशी 14.07.13
આ તો તે કેવો વરસાદ પડ્યો ?
આ તો તે કેવો વરસાદ પડ્યો ?
લાગ્યું જાણે કોઈનો સાદ પડ્યો,
માણતા'તા ટીપાઓને લઇ ખોબે,
આંખોથી કેવો પ્રતિસાદ પડ્યો,
કર્યો સંબધો પર બેહદ વિશ્વાસ,
જાણે કેમ તેમાં વિખવાદ પડ્યો,
રોશની કરવા શોધ્યા આગિયા,
આગિયા થકી પણ વાદ પડ્યો,
હજી તો રુઝાતા'તા ઘાવ જુના,
ત્યાં નવી વીજળીનો નાદ પડ્યો.
નીશીત જોશી 13.07.13
શનિવાર, 13 જુલાઈ, 2013
देखे है मैंने टूटते तारे को
देखे है मैंने टूटते तारे को, वो भी संवरने लगा है,
कब समजेगा दिल, एक घाव पे मचलने लगा है,
उल्फत किस पे नहीं आती,खुदा भी बाकात नहीं,
सुबह तक इंतज़ार नहीं,रात देख तड़पने लगा है,
अश्क की छाँव में बैठके,निकलेगी नहीं जिन्दगी,
फिर हसने हसाने से परहेज क्यों करने लगा है?
कफ़स के परिंदे भी तो उड़ सकते है अंजुमन में,
और चलते चलते तू थक हारके ठहरने लगा है,
कली न बन सकती फूल कभी भी,गर डर होता,
बेफिझुल तू बिना खिले जिन्दगी से डरने लगा है !!!
नीशीत जोशी 12.07.13
તુજ ને નિહાળું છું
હું મુજ પડછાયામાં પણ તુજ ને નિહાળું છું,
ભૂલ્યો છું બધું એ પણ કે ક્યાંથી હું આવું છું,
સબંધો બાંધી એવા તો વિકસાવેલા છે તે,
દુર છો રહ્યા પણ હજી હું સબંધ સંભાળું છું,
જુદા જુદા નામે જગે સંબોધ્યા સબંધ ને,
ગ્લાનીઓ ભૂલી તુજના ગીત સંભળાવું છું,
નથી હું'ગાલીબ','ગની'કે નથી હું'બેફામ',
શબ્દો જોડી દુનિયાને તુજ યાદ જતાવું છું,
નથી ખપતો દરિયો મુજને આપેલો કોઈનો,
તુજ આપેલ એક ખોબે મુજ તરસ છુપાવું છું.
નીશીત જોશી 11.07.13
काफिलो मे अक्सर लोग खो जाते है
काफिलो मे अक्सर लोग खो जाते है,
खोये लोग अक्सर अकेले हो जाते है,
जब तक लिखा है कदम साथ चलना,
चल लिए फिर वही रास्ते सो जाते है,
राही हो साथ,तन्हाई भी रहती है दूर,
राह अलग होते ही उदास हो जाते है,
याद करते मंजर,याद आता है जाम,
भूलने वास्ते मयकदे फिर वो जाते है,
नशे की आदत पाल लेते है कुछ लोग,
आँखों से मय पीने अक्सर जो जाते है !
नीशीत जोशी 09.07.13
सुन ऐ जमाने
सुन ऐ जमाने, तेरी दुआओ से, साथ हमारा छूट गया,
मौत ने दी दावत, हमारा कब्र तक का रास्ता खुल गया,
गुनाह किया था जो हमने, सजा मिलनी भी लाज़मी थी,
सिर्फ बचा था अब तलक पास मेरे, दिल हमारा टूट गया,
मुहब्बत की गिरफ्त में थे, जो अब तो अतीत बन चुका,
भूतकाल में किये वादों सहित, वो दुआओ से मैं लुट गया,
पामाल हो गये हर लम्हे, जो साथ बिताये थे कभी हमने,
दुआ का असर देखो, हमें याद रहा, वोह सब भूल गया,
हर हाइल को पार करने का, जज्बा रखा था इस दिलने,
पर, जहर मिला तो पी कर के, दिल ये हमारा झूम गया !!!!
नीशीत जोशी 08.07.13
हाइल = obstacle
શનિવાર, 6 જુલાઈ, 2013
एकबार दर्द भरा यह पल कट जाने दो
उनके नाम की गझल कह जाने दो,
गुमनाम तन्हा चराग जल जाने दो,
दिल की यह कश्ती पार होगी जरूर,
समंदर का तूफ़ान जरा थम जाने दो,
बुलन्दी होती है ऊँची इमारत की तरह,
आयेंगे लौटके, इमारत ढह जाने दो,
कुदरत के करिश्मे से वाकिफ है जहाँ,
खुदा को एक चमत्कार कर जाने दो,
सांस लेना भी दुस्वार है उनके बगैर,
आज आश की सांस जरा भर जाने दो,
सुकून से जी लेंगे साथ साथ दोनों,
एकबार दर्द भरा यह पल कट जाने दो !!!!
नीशीत जोशी 06.07.13
એકલા ચાલતું નથી
તેઓને ત્યાં કોઈપણ આવતું નથી,
કેમકે સરખું જીવતા આવડતું નથી,
અહમ જ ટકરાતા હોય છે હરઘડી,
લાગે છે એકબીજા ને ફાવતું નથી,
બન્ને ને સમજાવી ભેગા કરે દુનિયા,
આમાં પણ પાછું કઈ જામતું નથી,
જીવે તો છે બન્ને પોતપોતાની રીતે,
એકબીજાનું જાણે કઈ દાઝતું નથી,
કંઈક તો છે અને હશે બન્નેની વચ્ચે,
બીજી પળે પાછું એકલા ચાલતું નથી.
નીશીત જોશી 05.07.13
रहमतदार बनके तू रहम रखना
हिसाब रखता हूँ मैं
जहाँ के हर फरिस्ते का राहदार हूँ मैं,
हर किसी के करमों का पहरेदार हूँ मैं,
जो कहूँगा, करना पड़ेगा हर किसी को,
वो अन्जानी राह पर भी राहदार हूँ मैं,
नफरतो से दूर तलक वास्ता नहीं मेरा,
प्रेमिओ के वास्ते प्रेम का बाझार हूँ मैं,
जहाँ के वास्ते हर कण में बॉस है मेरा,
वो जैसे चाहे वैसे ही रूप में दीदार हूँ मैं,
वो करते रहे पाप, हिसाब रखता हूँ मैं,
हर करमों का फल देने में दिलदार हूँ मैं !!!!!
नीशीत जोशी 02.07.13
माँ की गोद
ऐसा कर्ज है जो उतारा नहीं जाता,
कोशिशो से वो जताया नहीं जाता,
खून सींच सींच कर इन्सान बनाये,
शब्दों में वो दर्द बताया नहीं जाता,
खुद भूखी रह के खाना दे बच्चो को,
उनके ममत्व को नकारा नहीं जाता,
छोटीसी चोट पे दिन रात एक कर दे,
प्यारसा हाथ उनसे हटाया नहीं जाता,
इश्वर भी तरसता है माँ की गोद पाने,
उनसे गोद सा स्वर्ग बनाया नहीं जाता |
नीशीत जोशी 30.06.13
पर एकबार तो साथ एक डगर आये ??
आब-ए-चश्म, आँखों में भर आये,
बनके याद, वो खाब में उतर आये,
उम्मीद थी, राहबर बन देंगे साथ,
नसीबा अपना, बनकर जहर आये,
अपनों में नहीं दिखे, जो थे अपने,
रकीबो की भीड़ में, वो नजर आये,
विराना से उफता गए थे, हम भी,
इसी वास्ते, गाँव छोड़ शहर आये,
सुकून से जीना भी सिखा देंगे उसे,
पर एकबार तो साथ एक डगर आये ??
नीशीत जोशी 30.06.13
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