ગુરુવાર, 10 ઑક્ટોબર, 2013
वोह रोये बहोत
मैं जब याद आया उसे,वोह रोये बहोत,
गलतीके एहसासमें, जागते, सोये बहोत,
आबे दीदाह का दरिया, लिए बैठे थे वोह,
देखके, टूटे आयने में परछाई, खोये बहोत,
ना मिटा सके वोह, हाथो से रंग खून का,
कातिल ने दाग मिटाने, हाथ, धोये बहोत,
जमाने के डर से वोह, खामोश रह गये,
खुदने खुद की राह में, कांटे बोये बहोत,
महेंदी, किसी और के नाम की मांड ली,
देखके चढ़ा रंग हाथो में, वोह रोये बहोत !!!!
नीशीत जोशी 05.10.13
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