રવિવાર, 27 ઑક્ટોબર, 2013
अकेले न थे मगर हो गये अकेले
रंज-ओ-ग़म से वाकिफ है ज़माना,
जल के खाक हुआ आशियाना,
दिल-ए-ख़ास से मिली है वो सजा,
जुगनू ने जला दिया है परवाना,
सुनके अझान निकल पड़े आंसू,
दुआ का मुन्तझिर रहा दीवाना,
शहर-ए-खामोशा ने भी न दी जगह,
मैयत पे जो न हुआ उनका आना,
अकेले न थे मगर हो गये अकेले,
भूल गये सब जज्बात-ए-इश्क जताना !!!!
नीशीत जोशी 26.10.13
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