अन्दाजे दास्तां ब-खुबी से बया किया,
तेरे भुलने ने हमने बहोत याद किया,
खरीद कर लाये थे दो-चार बुन्द अश्क,
उसे भी छीन कर कहां इस्तमाल किया,
परदा कर छुपाते रहे चहरे पे लिये हसी,
वही राज को शहर मे परदाफाश किया,
कैसे समजाये नासमज हम भी तो है,
हर सवाल पर तुने भी और सवाल किया,
बसर करते रहे जीन्दगी तन्हा तन्हा,
खुद जलाके दिलको अपना घर रोशन किया ।
नीशीत जोशी
બુધવાર, 20 ઑક્ટોબર, 2010
આના પર સબ્સ્ક્રાઇબ કરો:
પોસ્ટ ટિપ્પણીઓ (Atom)
बेह्द उम्दा रचना…………सुन्दर भाव संयोजन्।
જવાબ આપોકાઢી નાખો