મંગળવાર, 5 ઑક્ટોબર, 2010

लगता है

आजकल कौन कहां युहीं किसके लिये इतना सोचता है,
दोस्तो की दोस्ती भी रोज नया नया ईम्तीहा लगता है,

धडकन तु, सांसो मे बसे हो तुम, कहते है गैरो के आगे,
रहते हो जब सामने उनके तब तो लबको ताला लगता है,

खिडकीसे झांकके छीप जाते हो,दर से चले जाते हो वापस,
हमारा आना तेरी गली में शायद तुजे मुफलीसी लगता है,

न मानेगें बुरा गर मना करोगे तुम मुजे आके एकबार भी,
दिलसे खुरेचे हुए पुराने झख्म भी सभी नया सा लगता है,

सोचते बहोत हो, कह डालो जो कहने को मन करे तेरा भी,
मगर प्यार के हर लब्ज अब मुजे हाले-कातीलाना लगता है,

काबु मे रखते थे जजबात अपने कभी बया न किया किसीसे,
तेरी ही याद मे रात रात भर जागना अब दर्देनसीब लगता है.....

नीशीत जोशी

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