સોમવાર, 16 જાન્યુઆરી, 2012
" चमन "
वोह चमन ही क्या जीसे खिलने की सीद्दत न हो,
वोह मीलन ही क्या जीसे मीलने की मुद्दत न हो,
प्यार करनेवाले अक्सर जीते है नवाबो जैसे यहां,
वो प्यार ही क्या जीसे मुमताजकी किम्मत न हो,
वोह प्यार करने वाले रहेते है सातवे आसमन पर,
एकदुजे मे खो जाये ऐसे जैसे दुसरी जन्नत न हो,
अक्सर बहने लगते है अश्क जब याद आ जाती है,
छुपा देते है लोगो से क्यों की कोइ हरकत न हो,
चमन की फिजा को बदलने का करिस्मा जानते है,
फिझा क्या जीसे पतझड में बसंतकी हसरत न हो,
हर दुआ में उसे ही याद रखते है पहले हर किसीसे,
क्या करे ईबादत जीसे कबूल होने की किस्मत न हो,
अब चमन भी क्या करे फुलो को खीला के जहां मे,
वो मुरजाते फुलो के वास्ते जब कोइ महोब्बत न हो |
नीशीत जोशी
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