શુક્રવાર, 6 જાન્યુઆરી, 2012

कर गया मुजे वोह तन्हा


मीलनकी आश लगायी मगर सपना बनाकर के,
मीलते रहे ख्वाबो में दिलसे सजना बनाकर के,

आहोशमें लेने की बात पे अंन्जान बन गये वोह,
जलाया दिल मेरा लकडी सा जलना बनाकर के,

खामोश नीगाहे बोलती रही बहोत अनकही बाते,
आंखो का समंदर खोला मगर हसना बनाकर के,

महोब्बतने बेवफाई दीखा के पीलाना भी सीखाया,
और खाते रहे अनगीनत घाव चखना बनाकर के,

इस से बहेतर क्या सजा थी जो वोह देता मुजको,
कर गया मुजे वोह तन्हा मगर अपना बनाकर के ।

नीशीत जोशी 29.12.11

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