
कब कौनसे साथ-ए- सफर रहे हो तुम,
क्यों रुकसत से हमारी डर रहे हो तुम,
जब मौका मीला तब लब्ज न खोल पाए,
अब नया लिबास पहने सवर रहे हो तुम,
तेरी जुस्तजु थी हम महोब्बत करते रहे,
अब किसकी ऐसी तैयारी कर रहे हो तुम,
हम तो नीकल पडे थे अकेले सूनी राह पे,
पर क्यों उसी गली,वही शहर रहे हो तुम,
मेरे नाम साथ तेरा भी नाम सब ने लिया,
अब किसके नामका परचा भर रहे हो तुम,
प्यार अब भी बरकरार है ये बात जानते है,
फिर भी मुकर मुकर के बिखर रहे हो तुम ।
नीशीत जोशी
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