બુધવાર, 25 જાન્યુઆરી, 2012


उस कयामत रात कि कहानी कुछ और थी,
बीजलीका खौफ रात तुफानी कुछ और थी,

हम किनारे पे खडे थे और वो उस किनारे,
समन्दर के लहरो कि जुबानी कुछ और थी,

टमटमाती उन रोशनी मे जब देखा दोनोने,
जुबा खामोश आंखो कि रवानी कुछ और थी,

कहते न बन पडा किसीसे उस अंधेरी रातमें,
थर्राते उन लबो कि नातवानी कुछ और थी,

आहोश में लेने बेचैन थे कुछ देर तलक वो,
पर दिल पे दिमाग कि नादानी कुछ और थी,

लहरे भी आके वापस समंन्दर में खो जाती,
बर्फिली हवा मे वो रात सुहानी कुछ और थी,

पल बीता, रात बीती, दिन नीकलने को आया,
दिल ने जो दिल कि बात जानी कुछ और थी ।

नीशीत जोशी
नातवानी = weakness

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