સોમવાર, 30 જાન્યુઆરી, 2012
न सोच, न दंग हो
देख प्रिये यह कैसा सुहाना बसंत आया है,
तेरे साथ मुझे भी आज मौसमने हसाया है,
कुछ दफन हुयी बात आज सुन ले कानो मे,
तेरे ही इस बेपन्हा प्यार ने मुझे बचाया है,
कई बार पुछा धुमाके "ओर किसे चाहते हो",
आज कहता हूं तुझको ही दिल में बसाया है,
तुम्हारे दिदार वास्ते बीताये अनगीनत दिन,
विरहके सपनोने भी कइ रातो हमे जगाया है,
न सोच, न दंग हो गालो पे हाथ दे कर इतना,
ये मौसमने हर परदा तेरे सामने से हटाया है ।
नीशीत जोशी
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